Monday 5 February 2018

मन के भीतर

कल वह मेरे सामने बैठी रही
मैं भी उसे ताँकता रहा
वह रेलगाड़ी में बैठ दूर जाती रही
मैं उसके और करीब आता गया

मेरे अल्फ़ाज़ जो हैं वह उसके हैं
वह चुप थी
क़लम भी ठहरी रही
लगा ज्यों बैठी हो वह सामने
कुछ बोली ही नहीं
मेरी कॉपी का पन्ना ख़ाली पड़ा रहा

अब की कोई पूछता है मेरी ख़ामोशी का राज़
मैं उसके सामने ख़ाली पन्ना रखता हूँ

अब मैं कोरे पन्नों पर
अपनी प्रेम कहानी लिए फिरता हूँ
और महसूस करता हूँ तेरा मेरा लिखा जाना
कहीं भी जब जज़्बात लिखता हूँ |

No comments:

Post a Comment