Monday 5 February 2018

यार बंजारे

किताब एक ब्रह्माण्ड है
हर एक कहानी- एक दुनिया

बचपन में
जब भी मैं लुका छिपी खेला करता था
किताब का पन्ना पलटकर
उसमें घुस जाता था

मैं अपना जीवन शब्दों में तलाशता था
और शब्द अपना जीवन मुझमें
किताब के भीतर हम खेल रहे थे
लुका छिपी

जब मैं किताब से बाहर आया
सारे शब्द मेरे पीछे
किताब छोड़कर भाग आए

मेरे साथियों ने मुझसे पूछा
‘कि तू कहाँ छिपा था?’
मैंने उन्हें पूरी कहानी सुनाई

वे भाग पड़े
और किताब के ख़ाली पन्नों में घुस गए

अब मैं बड़ा हो गया हूँ
शब्द अब भी मेरे आस पास
पड़े रहते हैं- आज़ाद
मेरी तरह

मैं जब भी कोई किताब पड़ता हूँ
उसमें कई किरदार नज़र आते हैं
कुछ दफ्तरों में
कुछ काम में व्यस्त
वे किताब की कैद से आज़ाद होना चाहते हैं
वे बस जीना चाहते है

वे सब मुझे पहचानते हैं
कहते हैं
कि वे मेरे बचपन के दोस्त हैं

मैंने उन्हें कहा-
‘घबराओ मत दोस्तों, हम अभी भी खेल रहे हैं’
तुम सब किताब में नहीं फसे हो
तुम सब दुनिया में भी नहीं फसे हो
‘तुम सब, - दुनियादारी में फसे हो

अगर जीना है तो
वापस दुनिया में आओ
और, यार...बंजारे बन जाओ | 


( संजय शेफर्ड सर का लिए )

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