Saturday 28 March 2020

वो लड़का

तुरुप का इक्का जिसकी कोई काट नहीं है
लगा लो कीमत
मेरा कोई भाव नहीं है

चार चवन्नी ग्यारह इक्के किसके हैं?
दिल की कर तू भाव लगा
रे, दम है तो तू दाव लगा
लगा इश्क़ की बाज़ी - दो के हिस्से बीस ले

मकानों से खड़े भीड़ के संसार में
यूँही नहीं खड़ा तेरे बाज़ार में

रात चांदनी
उस पर जो मझधार
पानी पर तिरती है मेरे प्रेम की धार

खड़ा मोहब्बत में वो अल्हड़ लड़का हूँ
बाहें फैला दे जो, बस मैं उसका हूँ |

उनके बारे में

सांस लेता है, जीता है जो बिना हवा के
सब जानते थे
हमें छोड़कर, आसपास

कि दोनों को चिंता दोनों की, दोनों बहके बहके यार
दोनों मिलते तो जीते हैं
दोनों में है बरबस प्यार
दोनों गूंगे बहरे, दोनों अंधे कांढ़े हैं
दुनिया को सुना नहीं दोनों ने

पर उसने न मानी
मेरे दिल ने, दिल ही दिल मानी बात 

फिर उस अंधी को इक दिन आँखें हाथ लगीं
लड़के ने देखी बरसातें,
उसको यादें हाथ लगीं |

Friday 27 March 2020

खिड़की

कदम रखे इसमें
उस दुनिया में झाँका था
दिल की कहाँ चार दीवारी होती है !

देह नहीं है, आवाज़ नहीं है
कोई आस - पास
आती है तब भी मुझ तक
आख़िर उसकी याद

रूह एक पनाह देती है जब भी दिल रोता है
जो होता है, बदौलत उसकी होता है

प्यार मिला नहीं तो क्या मर जाएगा?

उसके कान पढ़ें न मेरी यादें
सब बहकी बातें हैं
दो दुनियाओं का दरवाजा खिड़की होती है |

Thursday 26 March 2020

कल्पना

हवाओं के गलियारे पार कर
चुप्पी की सीढ़ियों से
बाहों का समंदर सिरआने आया
प्रेम की चादर ओढ़
छुअन की गर्मी बगल में लेटी पूरी रात

चुंबन के संवादों से भीगे थे जज़्बात
देह ने जी भर की थी बहकी बहकी बात
अहसास ने जमकर अपनी चाल चली थी
दिल भी दिल से मिला था पहली बार

रात के सपने ने दिन में गोता लगाया
थी कल्पना साथ, उसने प्यार निभाया

गोई से तने पे उसने एक दिल बनाया
जानती थी मेरा नाम
संग अपना नाम सजाया

Tuesday 24 March 2020

दरार

रात बंज़र बेबस सी कतराती आई
मैंने दिल्लगी की
मैंने 'मुँह की खाई'

गुणा-गणित करती थी वो अक्सर, मैंने उसमें भी पहचान बनाई
एक ग़फ़लत में मैंने पल को हारा
उसको हारा
अब सपनों की क्या बात करूँ?
मैंने दिन में आग लगाई

वो लिए बगल में बैठी रहती दरार के किस्से
कहती सबसे न कहती प्यार मेरे हिस्से

मैंने आँखों से उस पार देखा था, 'खिड़की' थी घर में उसके
उसने कहीं, यार देखा था

Sunday 22 March 2020

सात समंदर

पास आए, नज़रें उठाए
जो मुस्काए
धूप की चादर कोने पकड़े चार बलाएँ

मद्धिम बहे पवन
लोग कुछ नज़रें चुराएँ

गले मिल जाएँ, इश्क़ दिखाएँ
डूबे जाएँ
कोरे पन्नो की तरपालों पे चाहत की रास लगाएं

होंठों से चूमे होंठों को
धूमिल हो जाएँ

बित्ता भर ख़याल में कोई तेरे आये ! इंची भर सवाल में कोई मेरे आये?
'वाइस वर्सा'

धूल की चादर,  इश्क़ की गर्मी
दीवार उठाए

ग़र डूबें तो, दोनों को ले डूबे मोहब्बत
बहें कहीं तो, दोनों समंदर में मिल जाएँ |

आख़िरी पड़ाव

पास खड़े थे
लड़ते लड़ते लौट रहे थे
अबकी बार मिले तो बाहों में भर लेंगे
जाते जाते सोच रहे थे वे दोनों 

सीढ़ियां

घर के अंदर शोर है, घर के बाहर शोर है
सीढ़ियों पर बैठा एक लड़का
उसके भीतर मौन है

सुनसान खड़ी दीवारें, चुप्पी की कतारें
बोलीं एक ही बात
आसमान से भी दौड़ा आया वही एक ख़याल

बातें चलने लगीं, यादें फिरने लगीं
आँखों के बादल भर बौछार लाए
माहौल ने भी आवाज़ लगाई

फिर दिल भी बोला 'उससे एक पल बात करूँ'

पर उस पल के आगे अब उससे कोई बात है
वह एक रात थी वैसी अब कोई रात नहीं है |   

Tuesday 17 March 2020

चार पंक्तियाँ

एक पंक्ति में मुलाकात लिखी
दूजी खाली छूट गई
'बिखराव' लिखा तीजी पंक्ति थी
चौथी मुझको छोड़ गई |