Sunday 10 December 2017

साथ की बात

तुम अक्सर मेरे सपने सुनने 
मेरे पास बैठी होती हो
सपने सच हैं 
हमारा साथ बैठा होना झूठ 

तुम्हारे झूठ मूठ के साथ बैठे होने से 
मैं दुखी नहीं हूँ 
क्योंकि 'कल्पना सच है 
समूचा यथार्थ झूठ'

यथार्थ में साथ होना भ्रम है 
कल्पना में साथ होना- प्रेम 
मेरा सोना झूठ है 
सपने में तुम्हारा होना - सच 

साथ की बात यह है 
कि तुम्हारा अक्सर मेरे पास आना 
सपने का प्रेम है हमसे 
'अब हम एक हैं, एक सपना'

दोस्त

एक मीठे सुर वाली चिड़िया 
मुझसे बात करने लगी 
वो बोली नहीं
पर उसने कहा था एक दिन- साथी 

वो मेरे कंधे पर हाथ रखती 
और कभी कभी 
मेरा हाथ पकड़कर आसमान में ले जाती 
उसे मेरी फ़िक्र है 

मुझे उसकी चुप्पी नहीं भाती 
पर उसका गीत 
लुका छिपी का खेल है 

एक दिन सपने में कहा था उसने 
"मैं उड़ जाउंगी ऐसी की वापस नहीं आउंगी"

मैं उससे अपनी दिनचर्या कहता 
वह भी आधी अधूरी बातें करती 

वह मुझसे मेरा सपना पूछती है 
मैंने नहीं बताया 
दो ही तो ख़जाने हैं मेरी दोस्त,मेरा सपना 
डर है 
कहीं वो मेरा सपना ले उड़ी तो 
कहाँ ढूढूंगा उसे?

त्रासदी

मैं एक सपना देखता हूँ 
कि  
मैं प्रेम में हूँ 
और 
पहली बार देखता हूँ 
की 
न्यूटन का तीसरा सिद्धांत फ़ेल हो गया 

क़िरदार

टिक टिक टिक टिक बीता में 
आधा मैं 
आधा तेरी याद में 

रात अँधेरी बन बहा में 
जुगनू मैं, जज़्बात में 

मैं एक कहानी चुप्पी की 
थोड़ी सी आवाज़ में 
थोड़ी सी आवाज़ मैं 

दो बातें

बात एक ही है 
पर दो बातें हैं 
एक बात के इस पार 
एक बात के उस पार 

प्रेम एक ही है 
और... प्रेम के इस पार भी प्रेम 
उसपार भी प्रेम 
प्रेम में कोई नुकीला शिरा कभी नहीं होता 

साथ एक ही है 
पर दो जीवन हैं 
मैं जो हूँ साथ के इसपार 
तुम जो हो साथ के उसपार 

मैं गुज़र चुका सा हूँ

मुलाक़ात ने 'बंधन' दिया
'बंधन' ने  रिश्ता 
हमारा प्रेम वो उन्मुक्त पंछी  था 
जो उड़ा नहीं 

अकेलापन तुम्हारे साथ होने में भी था 
जो तुमने कलाई पर 'रिश्ता' बाँधा 
जी लिया मैंने 

अब जो दोहराया तुमसे, तुमने कह दिया 
की "तुम्हारे भीतर की तुम मेरे साथ हो,
मैं अकेला नहीं"

मैं जो लिखता रहा शब्दों में बार बार 
कि "मेरे भीतर का मैं साथ हूँ तुम्हारे "
तुम जो मेरा तमाम लिखा पढ़ बैठी हो 
पता नहीं क्यों?
तुमने पड़ा नहीं 

एक बात और 
मेरे भीतर का मैं जो तुम्हारे साथ है 
तुमने मुझे तो कह दिया 
'न जाने क्यों?, उसे कहा नहीं | 

खिलौना

ख़ुशी उस वृद्ध  के चेहरे पर कभी नहीं आती
वह नन्ही प्यारी मुनिया सी डोलती 
आगे-पीछे, दाएँ-बाएं

कभी ऊँगली पकड़ साथ चलना लगती 
कभी गोद में उठाने की ज़िद करने लगती 
और कभी कभी 
रो पड़ती 
उसे उसका खिलौना नहीं मिला 

हर शाम मुनिया की दादी के साथ 
वह पूजा पाठ करती 
कभी बारिश बन वृद्ध के चेहरे पर बरस पड़ती 
अब खेतों में भी वह उगने लगी थी 

वृद्ध जो ढोता आ रहा है उदासीनता का भाव 
ख़ुशी को नहीं जानता 
पर ख़ुशी उसकी उदासीनता से चिढ़ने लगी थी 
वह यह कैसे बर्दास्त कर पाती 
की वृद्ध उदासीनता का खिलौना है    

साथी सुनो न !

साथी ...सुनो न!
अब थोड़ा ठहर जाते हैं 

दो बातें कर लें 
जो भी तुम्हें कहना था कह डालो 
कुछ मेरी भी सुनना 
फिर, शामिल हो जाएँगे 
दौड़ कहाँ ठहरती है 
देखो, हमारे पाँव के निशान कह रहे हैं 

साथी ...सुनो न!
अब थोड़ा ठहर जाते हैं 
हम पिछ्ड़ेंगे नहीं आगे निकल जाएँगे 

स्त्री

एक कहानी है जो रोज़ बनती है 

जब वह घर से निकलती है 
और फुटपाथ पर चलती है
थोड़ी सी कुछ 
ज़िन्दगी सी गुजरती है 

कुछ आँखों में बस्ती है 
घटती है
मिटती है..!

फिर, हंसती है या रोती है
और शाम को ढोती भी है 

अक्सर सुन्ने में आता है 
वो एक कहानी है 
जो रोज़ बदलती है ! 

मैं बरसात के रास्ते आऊंगा

समुद्र 
तुम पुकारो तो मुझे  !

फिर चाहे तुम्हारे चारों ओर खड़ी हों 
असंख्य दीवारें, अनगिनत अड़चने 
और मेरे पाँव 
ठिठुर कर, स्थिर हो गए हों 
तुम तक जाने वाले तमाम रास्ते 
भले बदल चुकें हों अपनी दिशा 

समुद्र 
तुम पुकारो तो मुझे !
मैं बरसात के रास्ते आऊंगा 

समुद्र अगर मेरा तनिक भी अंश 
सूरज सोख ले 
तो बादल पर मुझे अधिकार देना 

मेरे इंतज़ार 
तुम पुकारो तो मुझे !

फिर चाहे मेरे कान सुनना बंद कर दें 
मुझे कुछ दिखाई न दे 

मेरी परछाईं 
तुम पुकरों तो मुझे !
मैं बरसात के रास्ते आऊंगा 

आदमी

ज़िन्दगी का सबसे बड़ा नाटक है 
ख़ुद को भरा जाना 
जो चलता रहेगा अनवरत 

मैं ख़ुद को ख़ाली करना चाहता हूँ 
फिर भर देना चाहता हूँ 
दोहराना चाहता हूँ इस प्रक्रिया को अनेंकों बार 

ताकि बचा रहे 
थोड़ा सा ख़ालीपन 
और मैं रहूँ 
आधा-अधूरा 

फ़ासला

ठीक तुम्हारे पीछे मैंने देखा 
तुम खड़ी हो
कोई और नहीं देख पाया जो मैंने देखा 

मैं किसी से कहता नहीं 
पर जानता हूँ 
ठीक तुम्हारे पीछे की परछाईं को 

सच कहूँ तो मैं तुम्हें 
प्यार नहीं करता 
वो जो ठीक तुम्हारे पीछे खड़ी है
वो कभी कभी तुमसी लगती है 
मैं तुम्हें प्यार कर बैठता हूँ 
ठीक तुम्हारे पीछे 

एक दिन जब मैं ठीक तुम्हारे पीछे चल रहा था 
याद है तुम नाराज़ हुई थीं 
तुम्हे लगा कि मैं तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ 
दरअसल, मैं उसके साथ था 
जो ठीक तुम्हारे पीछे थी 

आगे चल चलकर ऊब गया हूँ 
इसलिए अक़्सर कहता हूँ- चलो
मैं चलूँगा 
ठीक तुम्हारे पीछे 

और तुम जान भी न पाओगी 
ठीक तुम्हारे पीछे चलकर 
मैं तुम्हारे साथ चलूँगा 
....ठीक तुम्हारे पीछे

शाम का सपना

पानी का छोर दिख नहीं रहा 
तो मान लिया जाए 
कि मैं समुद्र को देख रहा हूँ तालाब में 

अगर मैं समुद्र पर पैर रखकर खड़ा हो जाऊं
तो ज़ाहिर है की सूरज को नीचे से छू लूँगा 
शायद, वह मेरी हथेली पर आ जाए

अभी अभी जो नाव गुजरी है 
उसने ठहराव को झुठला दिया है समुद्र के 
जो अब मेरी धरती है 

फिर भी, बेहिचक खड़ा रहूँगा 
धरती पर
इस तरह दो पहचान एक में तब्दील हो जाएंगी 

शाम का ओझल होना अच्छा लगता है 
सपने का नहीं 
फिर भी मैं सूरज को ढलते देखता हूँ 

ख़ामोशी बोलती है प्रेम

जब मैं बोलता हूँ वो चुप रहती है 
जब वो बोलती है 
मैं चुप रहता हूँ 

हम दोनों कभी नहीं बोलते 
एक साथ

पर हो जाते हैं कभी कभी
एक साथ मौन 
तब हमारे बीच का मौन बोलता है 

फिर बिना किसी आवाज़ के ही 
हम एक दुसरे को सुन लेते हैं 
चुपचाप 

मैं कहाँ हूँ

वह कहती है ... आप कहाँ हो?
लगता है उसे कह दूं 
जहाँ भी प्रेम लिखा है 
वहाँ तू है 
और उन दो अक्षरों की रिक्तता में, मैं हूँ 

जब हम जी चुके होंगे जीवन 
तब दो देह जलाई जाएँगी 
तुम्हारी और मेरी  
यमराज चौंक जाएगा जब उसे दो देह में,
एक ही आत्मा मिलेगी 
( एक साथ )
तब वह अपने रजिस्टर में सिर्फ़ 
तुम्हारा नाम लिखेगा 

तुम्हारे नाम के आगे कोष्टक बनाया जाएगा 
जिसमें लिखा होगा 
मेरी आत्मा का सच 
( रिक्तता में )
कि वह तुम्हारी ही आत्मा में भीतर कहीं है 

मैं तुम्हे क्या कहूँ 
कि मैं कहाँ हूँ?

मौन में बात

आवाजों में से संवाद चुराकर 
कह देना अपना मौन 
चुप्पी का एकालाप मत बुनना 
मेरे लिए 

मौन की अपनी एक भाषा है 
दो दिलों के बीच 
जब निःशब्द होता है 
तब प्रेम होता है मौन 

पक्षियों की देह और फरों के बीच 
जब दबा होता है 
तब उड़ान होता है मौन 

भीतर से ही दबे हुए 
आकाश छू लेने का सपना देखता है 
जब में नज़रे उठाता हूँ 
आसमान की ओर 
तब रंगीन बादल होता है मौन 

जब तुम मुझे सुनना चाहो 
तो मेरे मौन को सुन लेना 
अक़्सर 
मेरी आवाज़ होता है
मौन 

दीवार के पीछे

एक हद के बाहर 
मैं उसे समझ नहीं आता 
और एक सीमा के अन्दर वह मुझे 

दो दुनियाओं की एक कहानी है 
कि वे साथ साथ चलती हैं 
निरंतर 

मेरे दोनों जीवनों में 
रूपों का पक्षांतरण हो गया है
पर तू व्यवस्थित है वहीँ के वहीँ 

मैं नियति बदलने की फिराक़ में 
ख़ुद से 
विद्रोह कर बैठा हूँ 

रिश्तों का सहारा मुझे ताकत नहीं देता 
मेरे अकेलेपन में 
तू घुल जाना कहीं 

यह उम्र जंग सी लगती है 
बेहतर है 
जीता जाना नहीं 

क़ैद

मैंने तेरी यादों को धागे से बाँध लिया है 
और लौट आया हूँ 
आदिमानव के युग में 
जब काटने वाली कोई भी चीज़ न थी 

अब एक उम्र लगेगी पत्थर तलाशने में
की धागा काट सकूं 

मेरे हिस्से एक ही उम्र आई है 
तो बेहतर है 
तलाशूँ अपनी रूह ली उन्मुक्त्ता 

डर

कितना भयानक होता है वह मौन 
जिसके पीछे छिपी होती है 
आवाज़ 

और वह समय कितना भयानक होता है 
जब तू जानना चाहती है 
मेरी उदासीनता का राज़ 

जानता हूँ कि तेरे अलावा कोई भी तो नहीं मेरा 
मैं तुझे सब कुछ कहना चाहता हूँ 
पर चुप रहता हूँ 
कितनी भयानक होती है वह 
चुप्पी 

ख़ामोशी 
कभी कभी भयानक चीख़ होती है

भयानक होता है 
तुझे सामने देखकर अन्देखा कर देना 
और मान लेना की तू 
मेरी तलाश नहीं है   

प्रेम कभी कभी भयानक रास्ता होता है 

बचपन होता है प्रेम

ईश्वर ज्ञात हो तो फिर वह ईश्वर नहीं रह जाता 
तू अज्ञात ही बनी रहना 
ताकि दुनिया की हर महान बात लगे 
कि तूने कही है 
मुझे दृष्टि देने के लिए 
मेरी कृति 

जब मैं कृति से प्रकृति में लौटूंगा 
यह दौर 
ख़त्म हो चुका होगा 

तू मुझे वहीँ बाग़ में मिलना 
मेरी तितली 
और दे देना अंतिम चिट्ठी 
फिर भले उड़ जाना अनंत आकाश में 

मैं चिट्ठी पड़कर सो जाऊंगा ऐसा 
कि उठूंगा तो नया दौर लाऊंगा 
या नए दौर में जाऊंगा 

उम्र नहीं पूरा जीवन होता है 
प्रेम 
बचपन होता है प्रेम 

विद्रोह

मुझे कभी कभी आसमान 
हरा नज़र आता है 
और पृथ्वी 
वह भी हरी भरी ही नज़र आती है 

दुनिया भर के तमाम चेहरे 
हरे भरे हो जाते हैं 
कभी कभी 

मैं उत्सव मनाता हूँ 
उस वक़्त 
जो अपने चेहरे को रंगीन देखता हूँ 

यात्रा

उसके घर से मेरे घर की दूरी 
मेरी दो कविताओं 
के बीच के समय अन्तराल के  बराबर है 
उसके घर से उड़कर आते हैं  
शब्द 

शब्द जिन्हें मैं लिखता हूँ 
दरअसल, वे मुझे लिखते हैं  

वे लिखते है की असल में, 
मैं 
वह नहीं जो मैं हूँ 
मैं वह हूँ 
जो वे लिखते हैं 

आहट

कोई दरवाज़े पे खड़ा है 
कभी कभी 
कमरे में बैठे-बैठे महसूस करता हूँ 

एक रोज़ तंग आकर, दरवाज़ा खोलता हूँ 
अब आज़ाद है परछाईं तेरी 
अपनी आहट से बोलता हूँ 

फिर दरवाज़ा बंद कर भूल जाता हूँ 
अपनी आवाज़ 
हर रोज़, दोहराता हूँ ख़ुद को 
बार बार 

शून्य की तलाश

जब आसमान को बांटा जाए 
तो बादल का एक टुकड़ा 
मेरे नाम कर देना 
मैं अपने मौन को तलाशना चाहता हूँ 
संसार के कोने कोने में 

उस बादल के टुकड़े से बने 
ख़ालीपन में 
छिपकर बैठा होगा मौन 

जिंदगी जो कुछ नहीं थी 
तलाश है 
अपने मौन की 

छाया

पेंसिल से खींची एक लक़ीर 
बड़ते-बड़ते ब्रह्द हो गई 
वह दुनिया की 
सबसे बड़ी लक़ीर मान ली गई 
समुद्र और धरती फिर एक न हो सके 

पहली बार मैंने 
भूगोल का मानचित्र बनाया था 
रबर घिसते-घिसते ड्राइंग शीट हो गई 
नीले रंग ने हठ नहीं छोड़ा 
तब से आकाश नीला है 

समुद्र के आकाश हो जाने की कल्पना 
साकार हो गई 
वह लक़ीर मिट न सकी