एक कहानी है जो रोज़ बनती है
जब वह घर से निकलती है
और फुटपाथ पर चलती है
थोड़ी सी कुछ
ज़िन्दगी सी गुजरती है
कुछ आँखों में बस्ती है
घटती है
मिटती है..!
फिर, हंसती है या रोती है
और शाम को ढोती भी है
अक्सर सुन्ने में आता है
वो एक कहानी है
जो रोज़ बदलती है !
No comments:
Post a Comment