कोई दरवाज़े पे खड़ा है
कभी कभी
कमरे में बैठे-बैठे महसूस करता हूँ
एक रोज़ तंग आकर, दरवाज़ा खोलता हूँ
अब आज़ाद है परछाईं तेरी
अपनी आहट से बोलता हूँ
फिर दरवाज़ा बंद कर भूल जाता हूँ
अपनी आवाज़
हर रोज़, दोहराता हूँ ख़ुद को
बार बार
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