Sunday 10 December 2017

बचपन होता है प्रेम

ईश्वर ज्ञात हो तो फिर वह ईश्वर नहीं रह जाता 
तू अज्ञात ही बनी रहना 
ताकि दुनिया की हर महान बात लगे 
कि तूने कही है 
मुझे दृष्टि देने के लिए 
मेरी कृति 

जब मैं कृति से प्रकृति में लौटूंगा 
यह दौर 
ख़त्म हो चुका होगा 

तू मुझे वहीँ बाग़ में मिलना 
मेरी तितली 
और दे देना अंतिम चिट्ठी 
फिर भले उड़ जाना अनंत आकाश में 

मैं चिट्ठी पड़कर सो जाऊंगा ऐसा 
कि उठूंगा तो नया दौर लाऊंगा 
या नए दौर में जाऊंगा 

उम्र नहीं पूरा जीवन होता है 
प्रेम 
बचपन होता है प्रेम 

No comments:

Post a Comment