Sunday 10 December 2017

दीवार के पीछे

एक हद के बाहर 
मैं उसे समझ नहीं आता 
और एक सीमा के अन्दर वह मुझे 

दो दुनियाओं की एक कहानी है 
कि वे साथ साथ चलती हैं 
निरंतर 

मेरे दोनों जीवनों में 
रूपों का पक्षांतरण हो गया है
पर तू व्यवस्थित है वहीँ के वहीँ 

मैं नियति बदलने की फिराक़ में 
ख़ुद से 
विद्रोह कर बैठा हूँ 

रिश्तों का सहारा मुझे ताकत नहीं देता 
मेरे अकेलेपन में 
तू घुल जाना कहीं 

यह उम्र जंग सी लगती है 
बेहतर है 
जीता जाना नहीं 

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