Sunday 12 July 2020

एहतियात

असमय

वो भी आना, न था
बुलाना था
बुलाना, न था | लगाना था

कितना कुछ था गले लगाने को
कितना कुछ था झूल जाने को

कि पूछ लो हाल उसका

एक दूसरे का हाल पूछना ही
इस समय में,
हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत है !

आलम

मेरे पड़ोस में,

सबको मतलब है मेरी बदसुलूकी से
मेरा चक्कर
मेरी बेगारी
मेरे बबंडर फ़ैल जाते हैं आंधी से तेज़,

कभी नहीं फैलती भूख की खबर

किसी का भूख से मर जाना
हमारे पड़ोस में,

इस समय की सबसे बड़ी त्रासदी है !

Monday 6 July 2020

हिसाब – किताब


प्रेम से पहले
जानता था गुणा – गणित

अब ये आलम है
कुछ याद नहीं

भविष्य से मेरी
गणितीय पहचान बस इतनी है
कि
हममें से, किसी एक का हारना ही
एक दूसरे को
हार जाना है

Thursday 2 July 2020

हैरत

कहा नहीं गया था जब
जानते थे दोनों सब
सबकुछ अच्छा अच्छा लगता था

डर  था
कहने से सोचा ख़त्म हो जाएगा

एक दिन हौसला आया
ख़त्म हुआ सब, कहने के बाद 

Monday 22 June 2020

रहस्य 
(किसी नए की ओर)


बचपन का एक सपना 
एक बड़ा सा 
बहुत बड़ा सा गोला 
मुझे दबाता था 
हिला-डुला नहीं मैं 
न आँखें खोलीं 
न चिल्लाया 
कोशिश करता, तो भी कुछ न कर पाता था !


म्यार के नीचे का एक बिस्तर 
जिस पर मैं सोता था 
एक मैं,

कितना अच्छा था वो झूठ का गोला 
रात को आता 
दिन में, मैं भूल जाता था 


जब रात पसर जाती है 
मेरे सिरआने एक थका हारा सवाल आकर बैठता है 
इतना सन्नाटा क्यों हैं गलियों में?
लोग ऐसा क्या करते हैं 
सो जाते हैं बेसुध होकर 


उसकी कोई शक्ल, सूरत याद नहीं है 
पर था कुछ 
मुझको बचपन का खौफ़ याद वो ही है 


अब वो गोला बिगड़ गया है 
बिखर गया है 
दिन के उजियारे में फिरता है 
क्यों किसी को उसका खौफ़ नहीं है?


अब मैं बड़ा हो गया हूँ 
उस गोले से दो दो हाथ लड़ूंगा 
आँखें खुली हैं मेरी 
चिल्लाऊंगा अब उस पर 

रात हो या दिन, मैं सोता नहीं हूँ 
मैं जाग रहा हूँ | 

Thursday 11 June 2020

वज़ह  
(तुम्हारे लिए)


मेरी दिल्लगी में, एक इंच का भी 
फ़ासला नहीं आया है 
वो उतनी ही मुक़म्मल है हमेशा से 

तुमसे पहले 
और तुम्हारे बाद 

मैं जो दरअसल कुछ भी नहीं हूँ   
चाहता था कि मैं जिसके हिस्से आऊं 
पूरा का पूरा आऊं

एवज में खोना क्या, पाना क्या?

जान - पहचान
जुड़ाव  
दोस्ती 
हो या मोहब्बत,
वास्ता... मेरे भीतर का हिसाबी[1] छोर है

मैं चाहता था 
मैं चाहता हूँ 
और चाहूँगा हमेशा 

वास्ता हो तो पूरा हो 
न हो तो, न हो थोड़ा भी | 


[1] - गणितीय, हिसाब-किताब 

Friday 22 May 2020

मज़दूर

चल के पहुचूँगा खाने में
सोच के यह भी तो इक खाना है
रुक जाता हूँ
मैं एक मोहरा चलने को आगे-पीछे, दाएँ- बाएँ
पाँव बढ़ाता हूँ

बोल दे तो ये आलम रंग बदलता है
कितना फ़र्क़ है
कहने को हमसा एक खाना चलता है
उस हुक्मरान का हर चाल - चलन
उसको सब आज़ादी
पैसा जिसपे आख़िर इंसानियत क्यों हो उसकी अधिकारी?
एक जो सचमुच है अधिकारी
चले तिरछी चाल, काहे की ज़िम्मेदारी
फिर आता है वो अपनी चाल का मदमस्त हाथी

ठीक सामने दुश्मन सेना है इनके
ठीक सामने मेरे मुझसा एक दुश्मन मोहरा है
पहली बार मुझको मेरे जैसा कोई दिखा था
वो भी कर सकेगा कभी तरफ़दारी 

बीज जुगाड़ें
खेत में डालें
सीचें
धूप भी रोंदे, खलिहान लगाएं
फसल उगाएँ
ज़रूरत के सौ रूप तुम्हारी
हमपे है चलने को
इक खाना
हम हैं जो करते हैं तरफ़दारी

कहते सब हैं
हमें भी
अच्छा लगे, कोई करे तरफ़दारी

Friday 15 May 2020

पुनर्जन्म

इंतज़ार मेरा सबसे प्रिय शब्द है 
आख़िरी सांस तक 
किया है इंतज़ार मैंने तुम्हारा 
जो बचा है 
वो असल में मैं नहीं हूँ 
मैं होता तो तुम्हारे साथ होता | 

हम दुनिया में हर बदलाव झेल सकते हैं 
कैसे देख सकता है कोई प्रेम को बदलते हुए | 

दूसरा हो जाना इस समय की सबसे बड़ी त्रासदी है 
'अलविदा' कहने के बाद आदमी मर जाता है | 

Tuesday 12 May 2020

रात की बात

कोई बात करूँ
रेलगाड़ी में बैठी बात चली आती है
बेबस ख़याल
लेने स्टेशन बात को जाता है
सवाल बार बार आता है
बात सी वो लड़की, बात छुपा लेती है |

बेमतलब ख़याल एक बार आता होगा?
ख़याल छुपा लेता होगा
उस लड़के की आँखों में ख़याल कोई |

जिस रात नींद नहीं आती
एक रात याद आती है |

जागी थी एक लड़की ख़ातिर मेरे
याद आती है |

Monday 20 April 2020

रवैया

तुम कहो मेरे दोस्त हो 
और अब हम दोस्त हैं 
कभी कहना आकर अचनाक प्रेम 
मैं तुम्हारे प्रेम में पढ़ जाऊंगा 
सबकुछ इतना सहज है |

Sunday 19 April 2020

मोड़

बेबुनियाद अभ्यास के ठीक बाद 
आपको आभास होता है 
'प्रेम में प्रयास' और 'प्रेम' असल में दो अलग बातें हैं 
जब कोई मिले और उसके साथ चलने का अहसास हो 
तो मान लेना साथ तुम्हें धोखा दे रहा है 

आसमान को कभी आभास नहीं हो सकता
कोई उसे छू लेना चाहता है 
चाँद को खुद उसके किस्से कहाँ पता होंगे?
हमने गलत तवज्ज़ो देना सीखा है अपनी चाह को 

मैं उड़ने की कल्पना करता हूँ 
'लेकिन उड़ने की कल्पना उड़ान नहीं हो सकती'

सबसे सहज होगी मुलाक़ात 
यक़ीनन सब बदल जायेगा | 

पैग़ाम

न चाहें, दिल पे कुछ बातें लगती हैं 
अतीत की यादें महबूबा की बाहें लगती हैं 

ख़्वाब बिछे थे बिस्तर पर 
रातें सपने ले आईं 
किस्सा है उस रात का ये 
मयखाने में जो रात बिताई 

जब कदम बढ़ाए मैंने, क्यों उसने पीछे चाल चली?
और भला क्या होती बात मुझको उसकी बात खली 

खलल किस्म कोई भी हो 
बीच प्यार के पड़ती है 
ग़र वो तेरी, मेरी है 
कहाँ कभी फिर भरती है 

तिलिस्म अतीत का दिन एक खाक हो जायेगा 
कोई रास्ता नहीं आता दिल तक, ग़र रूठ जाएगा | 

Saturday 18 April 2020

सवाल

एक जो हर मदहोश को मिल जाता है 
एक के अनगिनत किस्से मन जाने 
करामाती पल और कुछ मयखाने 
याद रहे बस दो अफ़साने 

आये झरोखा, दर-बदर मुँह की खाए 
क्यों आवारा बादल दिल लगाए?

तितली के पीछे मैढ़- मड़ैया रोंदे थे 
बेपरवाह गुस्ताखी कर दिन बीते थे 
उत्तर देना कहाँ विरासत में हिस्से आया 
भूल से मैंने वो किस्सा दोहराया 

बीते पल रेंगता एक सवाल आया 
क्यों की गुस्ताख़ी, क्यों दिल लगाया?

Tuesday 7 April 2020

नतीजा

कहाँ से आती है आवाज़
कैसे मोहब्बत कहते हैं
प्यार क्यों ऐसे करना सीखा की भनक भी न लगी?

अलगाव की आहट का अंकुर कब फूटा था?
बातें क्यों निगल जाती हैं भावनाएँ
समय को उदासी क्यों खाती है?

प्रेम में, 'हाँ' कैसे हो सकता है इतना कठिन शब्द

जब रात सिरआने से उठेगी
सूरज शरीर को रौंदेगा
सबसे शातिर चोर है अलविदा, साथ खो चुका होगा |

Saturday 4 April 2020

वास्तविकता

प्रेमिका को जब भी स्पर्श करो 
टूटे कांच की तरह पकड़ना 
थोड़ी ग़लती और हाथ कट जायेगा 

साँसों की अदला बदली से जीते हैं 
जहाँ भी मिले हैं, 
समुद्र और धरती होंठों से मिले हैं
धरती को रही होगी प्रतिबिंब से नफ़रत 
समुद्र आसमान की समर्पित प्रेमिका है 

शरीर कभी नहीं मानता बुरा 
प्रेम में सारी चोटें दिल पे लगती हैं

Wednesday 1 April 2020

भूलभुलैया

जी जान से ढूंढ रहीं थी अँखियाँ वो नैया
हो कहीं मुझसी एक भूलभुलैया

उस दिन, एक हुई मुलाकात
जब भी की फिर दिल ने की बात

बंद हो जाएँ आँखें तो सपनों में सजती थी
खुलती आँखें तो सूरज से पहले दिखती थी

ख़ालीपन दरवाज़े पर जब ज़ोर लगता
उड़ता बादल जब भी मेरे सिर पे आता
कामकाज में कट जाये वो दिन था
रात में अक्सर मुझको उसका दिल बुलाता

घूमा उसके संग सुर्ख बरसाती में
हारा जो इकलौता दिल था छाती में 

Saturday 28 March 2020

वो लड़का

तुरुप का इक्का जिसकी कोई काट नहीं है
लगा लो कीमत
मेरा कोई भाव नहीं है

चार चवन्नी ग्यारह इक्के किसके हैं?
दिल की कर तू भाव लगा
रे, दम है तो तू दाव लगा
लगा इश्क़ की बाज़ी - दो के हिस्से बीस ले

मकानों से खड़े भीड़ के संसार में
यूँही नहीं खड़ा तेरे बाज़ार में

रात चांदनी
उस पर जो मझधार
पानी पर तिरती है मेरे प्रेम की धार

खड़ा मोहब्बत में वो अल्हड़ लड़का हूँ
बाहें फैला दे जो, बस मैं उसका हूँ |

उनके बारे में

सांस लेता है, जीता है जो बिना हवा के
सब जानते थे
हमें छोड़कर, आसपास

कि दोनों को चिंता दोनों की, दोनों बहके बहके यार
दोनों मिलते तो जीते हैं
दोनों में है बरबस प्यार
दोनों गूंगे बहरे, दोनों अंधे कांढ़े हैं
दुनिया को सुना नहीं दोनों ने

पर उसने न मानी
मेरे दिल ने, दिल ही दिल मानी बात 

फिर उस अंधी को इक दिन आँखें हाथ लगीं
लड़के ने देखी बरसातें,
उसको यादें हाथ लगीं |

Friday 27 March 2020

खिड़की

कदम रखे इसमें
उस दुनिया में झाँका था
दिल की कहाँ चार दीवारी होती है !

देह नहीं है, आवाज़ नहीं है
कोई आस - पास
आती है तब भी मुझ तक
आख़िर उसकी याद

रूह एक पनाह देती है जब भी दिल रोता है
जो होता है, बदौलत उसकी होता है

प्यार मिला नहीं तो क्या मर जाएगा?

उसके कान पढ़ें न मेरी यादें
सब बहकी बातें हैं
दो दुनियाओं का दरवाजा खिड़की होती है |

Thursday 26 March 2020

कल्पना

हवाओं के गलियारे पार कर
चुप्पी की सीढ़ियों से
बाहों का समंदर सिरआने आया
प्रेम की चादर ओढ़
छुअन की गर्मी बगल में लेटी पूरी रात

चुंबन के संवादों से भीगे थे जज़्बात
देह ने जी भर की थी बहकी बहकी बात
अहसास ने जमकर अपनी चाल चली थी
दिल भी दिल से मिला था पहली बार

रात के सपने ने दिन में गोता लगाया
थी कल्पना साथ, उसने प्यार निभाया

गोई से तने पे उसने एक दिल बनाया
जानती थी मेरा नाम
संग अपना नाम सजाया

Tuesday 24 March 2020

दरार

रात बंज़र बेबस सी कतराती आई
मैंने दिल्लगी की
मैंने 'मुँह की खाई'

गुणा-गणित करती थी वो अक्सर, मैंने उसमें भी पहचान बनाई
एक ग़फ़लत में मैंने पल को हारा
उसको हारा
अब सपनों की क्या बात करूँ?
मैंने दिन में आग लगाई

वो लिए बगल में बैठी रहती दरार के किस्से
कहती सबसे न कहती प्यार मेरे हिस्से

मैंने आँखों से उस पार देखा था, 'खिड़की' थी घर में उसके
उसने कहीं, यार देखा था

Sunday 22 March 2020

सात समंदर

पास आए, नज़रें उठाए
जो मुस्काए
धूप की चादर कोने पकड़े चार बलाएँ

मद्धिम बहे पवन
लोग कुछ नज़रें चुराएँ

गले मिल जाएँ, इश्क़ दिखाएँ
डूबे जाएँ
कोरे पन्नो की तरपालों पे चाहत की रास लगाएं

होंठों से चूमे होंठों को
धूमिल हो जाएँ

बित्ता भर ख़याल में कोई तेरे आये ! इंची भर सवाल में कोई मेरे आये?
'वाइस वर्सा'

धूल की चादर,  इश्क़ की गर्मी
दीवार उठाए

ग़र डूबें तो, दोनों को ले डूबे मोहब्बत
बहें कहीं तो, दोनों समंदर में मिल जाएँ |

आख़िरी पड़ाव

पास खड़े थे
लड़ते लड़ते लौट रहे थे
अबकी बार मिले तो बाहों में भर लेंगे
जाते जाते सोच रहे थे वे दोनों 

सीढ़ियां

घर के अंदर शोर है, घर के बाहर शोर है
सीढ़ियों पर बैठा एक लड़का
उसके भीतर मौन है

सुनसान खड़ी दीवारें, चुप्पी की कतारें
बोलीं एक ही बात
आसमान से भी दौड़ा आया वही एक ख़याल

बातें चलने लगीं, यादें फिरने लगीं
आँखों के बादल भर बौछार लाए
माहौल ने भी आवाज़ लगाई

फिर दिल भी बोला 'उससे एक पल बात करूँ'

पर उस पल के आगे अब उससे कोई बात है
वह एक रात थी वैसी अब कोई रात नहीं है |   

Tuesday 17 March 2020

चार पंक्तियाँ

एक पंक्ति में मुलाकात लिखी
दूजी खाली छूट गई
'बिखराव' लिखा तीजी पंक्ति थी
चौथी मुझको छोड़ गई |