Thursday 11 June 2020

वज़ह  
(तुम्हारे लिए)


मेरी दिल्लगी में, एक इंच का भी 
फ़ासला नहीं आया है 
वो उतनी ही मुक़म्मल है हमेशा से 

तुमसे पहले 
और तुम्हारे बाद 

मैं जो दरअसल कुछ भी नहीं हूँ   
चाहता था कि मैं जिसके हिस्से आऊं 
पूरा का पूरा आऊं

एवज में खोना क्या, पाना क्या?

जान - पहचान
जुड़ाव  
दोस्ती 
हो या मोहब्बत,
वास्ता... मेरे भीतर का हिसाबी[1] छोर है

मैं चाहता था 
मैं चाहता हूँ 
और चाहूँगा हमेशा 

वास्ता हो तो पूरा हो 
न हो तो, न हो थोड़ा भी | 


[1] - गणितीय, हिसाब-किताब 

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