Monday 20 April 2020

रवैया

तुम कहो मेरे दोस्त हो 
और अब हम दोस्त हैं 
कभी कहना आकर अचनाक प्रेम 
मैं तुम्हारे प्रेम में पढ़ जाऊंगा 
सबकुछ इतना सहज है |

Sunday 19 April 2020

मोड़

बेबुनियाद अभ्यास के ठीक बाद 
आपको आभास होता है 
'प्रेम में प्रयास' और 'प्रेम' असल में दो अलग बातें हैं 
जब कोई मिले और उसके साथ चलने का अहसास हो 
तो मान लेना साथ तुम्हें धोखा दे रहा है 

आसमान को कभी आभास नहीं हो सकता
कोई उसे छू लेना चाहता है 
चाँद को खुद उसके किस्से कहाँ पता होंगे?
हमने गलत तवज्ज़ो देना सीखा है अपनी चाह को 

मैं उड़ने की कल्पना करता हूँ 
'लेकिन उड़ने की कल्पना उड़ान नहीं हो सकती'

सबसे सहज होगी मुलाक़ात 
यक़ीनन सब बदल जायेगा | 

पैग़ाम

न चाहें, दिल पे कुछ बातें लगती हैं 
अतीत की यादें महबूबा की बाहें लगती हैं 

ख़्वाब बिछे थे बिस्तर पर 
रातें सपने ले आईं 
किस्सा है उस रात का ये 
मयखाने में जो रात बिताई 

जब कदम बढ़ाए मैंने, क्यों उसने पीछे चाल चली?
और भला क्या होती बात मुझको उसकी बात खली 

खलल किस्म कोई भी हो 
बीच प्यार के पड़ती है 
ग़र वो तेरी, मेरी है 
कहाँ कभी फिर भरती है 

तिलिस्म अतीत का दिन एक खाक हो जायेगा 
कोई रास्ता नहीं आता दिल तक, ग़र रूठ जाएगा | 

Saturday 18 April 2020

सवाल

एक जो हर मदहोश को मिल जाता है 
एक के अनगिनत किस्से मन जाने 
करामाती पल और कुछ मयखाने 
याद रहे बस दो अफ़साने 

आये झरोखा, दर-बदर मुँह की खाए 
क्यों आवारा बादल दिल लगाए?

तितली के पीछे मैढ़- मड़ैया रोंदे थे 
बेपरवाह गुस्ताखी कर दिन बीते थे 
उत्तर देना कहाँ विरासत में हिस्से आया 
भूल से मैंने वो किस्सा दोहराया 

बीते पल रेंगता एक सवाल आया 
क्यों की गुस्ताख़ी, क्यों दिल लगाया?

Tuesday 7 April 2020

नतीजा

कहाँ से आती है आवाज़
कैसे मोहब्बत कहते हैं
प्यार क्यों ऐसे करना सीखा की भनक भी न लगी?

अलगाव की आहट का अंकुर कब फूटा था?
बातें क्यों निगल जाती हैं भावनाएँ
समय को उदासी क्यों खाती है?

प्रेम में, 'हाँ' कैसे हो सकता है इतना कठिन शब्द

जब रात सिरआने से उठेगी
सूरज शरीर को रौंदेगा
सबसे शातिर चोर है अलविदा, साथ खो चुका होगा |

Saturday 4 April 2020

वास्तविकता

प्रेमिका को जब भी स्पर्श करो 
टूटे कांच की तरह पकड़ना 
थोड़ी ग़लती और हाथ कट जायेगा 

साँसों की अदला बदली से जीते हैं 
जहाँ भी मिले हैं, 
समुद्र और धरती होंठों से मिले हैं
धरती को रही होगी प्रतिबिंब से नफ़रत 
समुद्र आसमान की समर्पित प्रेमिका है 

शरीर कभी नहीं मानता बुरा 
प्रेम में सारी चोटें दिल पे लगती हैं

Wednesday 1 April 2020

भूलभुलैया

जी जान से ढूंढ रहीं थी अँखियाँ वो नैया
हो कहीं मुझसी एक भूलभुलैया

उस दिन, एक हुई मुलाकात
जब भी की फिर दिल ने की बात

बंद हो जाएँ आँखें तो सपनों में सजती थी
खुलती आँखें तो सूरज से पहले दिखती थी

ख़ालीपन दरवाज़े पर जब ज़ोर लगता
उड़ता बादल जब भी मेरे सिर पे आता
कामकाज में कट जाये वो दिन था
रात में अक्सर मुझको उसका दिल बुलाता

घूमा उसके संग सुर्ख बरसाती में
हारा जो इकलौता दिल था छाती में