Wednesday 1 April 2020

भूलभुलैया

जी जान से ढूंढ रहीं थी अँखियाँ वो नैया
हो कहीं मुझसी एक भूलभुलैया

उस दिन, एक हुई मुलाकात
जब भी की फिर दिल ने की बात

बंद हो जाएँ आँखें तो सपनों में सजती थी
खुलती आँखें तो सूरज से पहले दिखती थी

ख़ालीपन दरवाज़े पर जब ज़ोर लगता
उड़ता बादल जब भी मेरे सिर पे आता
कामकाज में कट जाये वो दिन था
रात में अक्सर मुझको उसका दिल बुलाता

घूमा उसके संग सुर्ख बरसाती में
हारा जो इकलौता दिल था छाती में 

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