Friday 30 March 2018

प्रेम कबूतर

कितने ही पन्नो में
न जाने कितने कबूतर उड़े
उन दिनों में कुछ बात थी

कागज़ कबूतर था
स्याही संदेस और नज़रें उड़ान थीं
न आँखें थीं, न आँसू  थे
फिर भी, याद थी मुलाक़ात थी

एक गुमठी पे खड़े होकर
एक गुमठी को तांकते थे
आशिक़ो के मोहल्ले में हमारी बात थी

जो कबूतर आकर बैठता था तुम्हारी खिड़की पर
उसे सुन्ना था
वो मेरी ही तो आवाज़ थी 

अभिनेता

मंच पर कदम रखते ही
ख़ुद को, नेपथ्य में कहीं भूल आता है
फिर ऐसे जीता है
कागज़ से उधार लिया जीवन
कि उसका अपना कोई जीवन नहीं था उस वक़्त

और जीवन में, कभी नहीं चूकता
एकदम सच्चे आदमी का किरदार निभाने से

मैं जब भी उस किरदार से मिलता हूँ
वो जीवन हो जाता है
तब मैं एक इंसान से मिलता हूँ
और मैं खुस होता हूँ
की दुनिया में सच्चा सा प्यारा सा इंसान
उस आदमी की शक्ल में हमारे बीच है

मैं चाहता हूँ
की उम्र अगर लम्बी दूरी चलना चाहती है
तो सिर्फ उसकी देह चुने

देखना, उम्र को अपने चुनाव पर
फक्र होगा

(शोभित भैया के लिए)

उन दिनों

जब तुम्हरी बातें संग में आती थीं
तो वो खिलकर आसमान बन जाता था
दीवारें जीने लगती थीं, किस्से मचलने लगते थे
वक़्त बीत जाता था

अभी कुछ देर और हमें
साथ चलना है
मेरे कमरे की उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती

न बोलता है
न सुनता है
मेरा कमरा न जाने क्यों अब मौन रहता है?

यादों का शीर्षक नहीं होता

हर दो चार दिन में
कोई न कोई याद पक ही जाती है
पता नहीं कहाँ?
मेरे भीतर तुम्हारी यादों का पेड़ है 

देर

अगर मैं अपने घर थोड़ी देर से पहुंचा
तो क्या घर मेरा नहीं रहेगा?
और अगर मैंने कभी भी नहीं कहा तुमसे
अपना प्रेम
तो क्या प्रेम नहीं रहेगा !

प्रेम का होना हम तय नहीं करते
वो खुद चुनता है उन दो जानों को
कि जिसके बीच वो रह सके

फिर भी मैं थोड़ी देर से बोलूँगा
ताकि इस बीच कोई और आवाज़
तुम्हारी अपनी हो जाए

मैं देर करूंगा
क्योंकि उस थोड़ी सी देर में
सिर्फ़ तुम्हारा या मेरा इंतज़ार नहीं है

उस थोड़ी सी देर में जो थोड़ा स इंतज़ार है
वो असल में हमारा प्रेम है

थोड़ी देर से अपने घर आने की मेरी वजह यही है
की घर को मेरा इंतज़ार रहे
और उस थोड़े से इंतज़ार में
हमारे बीच प्रेम जीता रहे

हम भाग के चले

( खुशी के लिए )


हम भाग के चलेंगे ख़ुशी, हम भागेंगे
देखना एक दिन हम जीत जायेंगे
पर हम जीतने के लिए कभी नहीं भागेंगे
हम जीने के लिए भागेंगे

चाहे हम हमेशा न स्वीकारें जाएँ
या हमेशा ही नकार दिए जाएँ
हम भाग के चलेंगे क्योंकि हमें दुनिया को
एक नाइ चाल चलने की संभावना देना है

हम अपने लिए भागेंगे
हम उनके लिए भागेंगे जो भाग नहीं सकते

हम कभी नहीं रुकेंगे
क्योंकि भाग के चलना हमारी अपनी चाल है
और हम अपनी चाल में ‘भाग के चलेंगे’
बहती हुई मुस्कराहट की तरह
बहती हुई नदी की तरह
हम भाग के चलेंगे
पर किसी और को हराने के लिए नहीं
हम हम भाग के चलेंगे ताकि ख़ुद से जीत सकें

चुभन

मैं जीवन में कभी नही रोया हूँ
पर इन दिनों
एक चुभन है जो बार बार उठ आती है

ये चुभन तुम्हारे ख़यालों से उठती है
ये चुभन तुम्हारी यादों से उठती है
ये चुभन तुम्हारी बातों से उठती है

ये बातें हमारे मौन की बातें हैं
जो तुम्हारे कुछ कहे जाने में
शेष बची रह जाती हैं

मैं तो मौन की चादर ओढे बैठा हूँ
जो तुम्हारा पहला तोहफ़ा थी
तब से अब तक मैं मौन हूँ
और मैं मौन रहकर ही
तुम्हारी शेष बची हुई बातों का मौन सुनना चाहता हूँ

मैं कहना चाहता हूँ की संभावनाएँ ख़त्म नहीं होतीं
वे जन्मती हैं
प्यार में, नफ़रत में और इंतज़ार में भी

मैं रोऊंगा जी भरकर
और हो सका तो तब तक
जब तक मेरी आँखों से तुम्हारी यादें न सूख जाएँ

मैं इन्ही संभावनाओं को लेकर
स्मृतियों को घिसता रहूँगा
फिर भी अगर मेरा बीतना बचा रहा
तो मैं जियूँगा साथी...!