Friday 30 March 2018

चुभन

मैं जीवन में कभी नही रोया हूँ
पर इन दिनों
एक चुभन है जो बार बार उठ आती है

ये चुभन तुम्हारे ख़यालों से उठती है
ये चुभन तुम्हारी यादों से उठती है
ये चुभन तुम्हारी बातों से उठती है

ये बातें हमारे मौन की बातें हैं
जो तुम्हारे कुछ कहे जाने में
शेष बची रह जाती हैं

मैं तो मौन की चादर ओढे बैठा हूँ
जो तुम्हारा पहला तोहफ़ा थी
तब से अब तक मैं मौन हूँ
और मैं मौन रहकर ही
तुम्हारी शेष बची हुई बातों का मौन सुनना चाहता हूँ

मैं कहना चाहता हूँ की संभावनाएँ ख़त्म नहीं होतीं
वे जन्मती हैं
प्यार में, नफ़रत में और इंतज़ार में भी

मैं रोऊंगा जी भरकर
और हो सका तो तब तक
जब तक मेरी आँखों से तुम्हारी यादें न सूख जाएँ

मैं इन्ही संभावनाओं को लेकर
स्मृतियों को घिसता रहूँगा
फिर भी अगर मेरा बीतना बचा रहा
तो मैं जियूँगा साथी...!

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