Sunday 22 March 2020

सात समंदर

पास आए, नज़रें उठाए
जो मुस्काए
धूप की चादर कोने पकड़े चार बलाएँ

मद्धिम बहे पवन
लोग कुछ नज़रें चुराएँ

गले मिल जाएँ, इश्क़ दिखाएँ
डूबे जाएँ
कोरे पन्नो की तरपालों पे चाहत की रास लगाएं

होंठों से चूमे होंठों को
धूमिल हो जाएँ

बित्ता भर ख़याल में कोई तेरे आये ! इंची भर सवाल में कोई मेरे आये?
'वाइस वर्सा'

धूल की चादर,  इश्क़ की गर्मी
दीवार उठाए

ग़र डूबें तो, दोनों को ले डूबे मोहब्बत
बहें कहीं तो, दोनों समंदर में मिल जाएँ |

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