Sunday 10 December 2017

मैं गुज़र चुका सा हूँ

मुलाक़ात ने 'बंधन' दिया
'बंधन' ने  रिश्ता 
हमारा प्रेम वो उन्मुक्त पंछी  था 
जो उड़ा नहीं 

अकेलापन तुम्हारे साथ होने में भी था 
जो तुमने कलाई पर 'रिश्ता' बाँधा 
जी लिया मैंने 

अब जो दोहराया तुमसे, तुमने कह दिया 
की "तुम्हारे भीतर की तुम मेरे साथ हो,
मैं अकेला नहीं"

मैं जो लिखता रहा शब्दों में बार बार 
कि "मेरे भीतर का मैं साथ हूँ तुम्हारे "
तुम जो मेरा तमाम लिखा पढ़ बैठी हो 
पता नहीं क्यों?
तुमने पड़ा नहीं 

एक बात और 
मेरे भीतर का मैं जो तुम्हारे साथ है 
तुमने मुझे तो कह दिया 
'न जाने क्यों?, उसे कहा नहीं | 

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