हम सरहद ही तो है
क्योंकि हमारे भीतर भी तो एक दुनिया है
तो क्या हमारा होना ग़लत है?
या फिर सरहद का होना
सही
हम अपने बाहर और भीतर से
ऐसे ही जूझते हैं
जैसे- दो देश, दो दुश्मन
तब तो गड़ी रहनी चाहिए- बागड़ें
और दीवारों को पनपने देना चाहिए
झगड़े की बात को
फिर उत्सव की तरह देखना चाहिए
अगर नहीं!
ता सारी सरहदों को पगडंडी में तब्दील किया जाना चाहिए
ताकि राहगीर को रास्ता मिल सके
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