हम कोई किताब उठाते हैं और पलटते पन्नों के साथ
बीतते जाते हैं
अहसास से परे थोड़ा बदल जाते हैं
किताब क हमसे होकर गुजरना, हमारा अहसास है
चुनाव जो हम करते हैं
दरअसल, वह हमारा नहीं होता
वह किसी और के द्वारा हमें चुना जाना होता है
इस व्यापार के षड्यंत्र का रचनाकार वक़्त हमेशा
चुप्पी में छिपा होता है
वह गुज़रने की कला जानता है
हम मोहरे है जो जीवन में ख़ुद को तरह तरह से
बेचने की तलाश करते हैं
और अंततः दुनिया की तमाम दुकानें बंद पाकर
स्वप्न में, पलकों को बंद कर सो जाते हैं
गुमनाम |
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