मैं कई दिनों तक तलाशता रहा
पर श्वेत तितली नहीं मिलीं |
फिर सोचता हूँ जिस तितली को
मैंने उड़ते नहीं देखा
कहानियों में भी जिसका ज़िक्र नहीं सुना
वह कैसे मेरे नाम ख़त छोड़ गई?
ख़त में लिखा है
‘तुम्हारी प्रेमिका मैं हूँ !’
बचपन के दिनों में तुम घुटनों के बल रेंगते थे
और मेरा पीछा करते थे
तब तुम्हें रंगों की समझ नहीं थी
काश ! ...कि मैं अब भी
प्रेम के रंग समझ पाता |
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