तुम्हें याद है रेल का वह सफ़र
तुम स्टेशन पर खड़ी थीं
और रेलगाड़ी के गेट पर खड़ा मैं
धीरे धीरे तुमसे दूर जा रहा था
असल में वह दूर जाना
दूर जाना नहीं था
क़रीब आना था
उस यात्रा के बाद मैंने ख़ुद को खो दिया है
और तुम्हें भी कहाँ पाया है
हमारे अलावा वहाँ एक तीसरा व्यक्ति था
जो लिख रहा था प्रेम कहानी
उसकी कल्पना में मेरे हिस्से विक्षोह था
सो उसने लिख दिया
जैसे जैसे रेलगाड़ी बढ़ती गई
तुम मुझमें समाती गईं
जब में रेलगाड़ी से उतरा
मैं, अब मैं नहीं था |
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