देश
अब एक कमरे में सिमटा है
दुनिया
“एंड्राइड” हो गई है
समूचे पुरुष उसमें
दुनिया की सभी स्त्रियाँ एक लड़की हो गई है
कमरे में बैठा व्यक्ति
जो ख़ुद को होशियार और ज़िम्मेदार समझता है
कहता है
देखो, मेरे कमरे की उम्र जो है
वह ढल रही है
उसे तकाज़ा नहीं बुढ़ापे का
उसी की तो उम्र है
जो धीरे धीरे चल रही है
यह वह उम्र है
जब फैलता है आदमी
ना जाने क्यों?, अब उसकी !
दुनिया सिमट रही है
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