मैं सोचता हूँ की जब भी पहाड़ लिखूँगा
कुछ नहीं लिखूँगा
न लिखे जाने में छिपी है उसकी विशालता
जैसे कोरा काग़ज
समेटे होता है अपने भीतर
हजारों किस्से
अनगिनत कहानियाँ
पर जब भी कोई कहानी उजागर होती है उसपर
वह सिमटकर सिर्फ़ एक हो जाती है
सिर्फ़ एक होना विशालता नहीं है
एक में अनंत हूने का आभास
पहाड़ होना है
मैं कभी हिमालय नहीं होना चाहता
एक ऐसा पहाड़ होना चाहता हूँ
जहाँ कोई इंची टेप लेकर नहीं गया
और उस छोटी सी ऊंचाई में विशालता को जीना चाहता हूँ
ऊंचाई कभी पहाड़ों में नहीं होती
वह हमारे भीतर छिपी होती है
और उसका हमसे उजागर हो जाना
हमारा पहाड़ हो जाना है
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