तुझसे दूर जाने की कोशिश में
मैंने ख़ुद से
संवाद करना छोड़ दिया
अब शब्द तो हैं पर
कोई पैमाना ठीक नहीं बैठता
नहीं बनती कविता
सोचता हूँ कविता बन भी गई तो क्या?
नई कविता की फ़िराक में
शब्दों से फिर खेलने लग जाऊंगा
और तू हमेशा बनी रहेगी मेरा इंतज़ार
इस तरह मैं ख़ुद को दोहराता रहूँगा
बार बार
मृत्यु, जिंदगी का इंतज़ार |
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