तेरी ख़ामोशी और मेरी बैचेनी
पक्के दोस्त हैं
सरहदें कभी कभी बेरहम होती हैं
जब वे तारों के परे
हमारे भीतर कहीं से बुनी जाती हैं
तू जो है वह
सरहद पार की कविता है
मैं सरहद पार का पंछी
जो अपने पंखो के चबूतरों पर बैठा
ताँकता है तुझे |
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