तेरे पहले संबोधन से पहले ही
मैंने अपने सपनों का संसार रच लिया
दुनिया की तमाम अमर प्रेमकथाओं के नायक
मुझमे समा गए
परत दर परत तू गहराती गई
इतनी की उम्र बीत जायेगी
उन परतों को हटाने में
अब की कोई और आवाज़
मेरे कानों को सुनाई नहीं देती
तो तू ख़ामोश है
तब भी न बोलती वह एक शब्द
जिसने लिख दिया अंत
दरअसल, कहानी उसी अंत से उपजी है
मेरे प्रेम की !
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