मैं चाहता हूँ, एक भूलभुलैया हो
कितना अच्छा हो
मैं और तुम जीवन भर उसमें
भटकें, भूलें और खो जाएँ
भूलभुलैया की चुप्पी में
कही कैद हो जाएँ- आवाज़ें
कितना अच्छा हो जो
मौन हमारा प्रेम हो जाए
एक पथ पर तुम चलती हो
एक राह मेरी भी है
कितना अच्छा हो अगर
ये दो राहें मिल जाएँ
मैं और तुम जीवन भर उसमें
भटकें, भूलें और खो जाएँ |
No comments:
Post a Comment