Monday 5 February 2018

पहर

शाम लगती नहीं की वह शाम है
जिंदगी की थकान से दूर जब बैठता हूँ किनारे
तब अपने अकेलेपन में
मेरी, सहेली होती है शाम

मैंने कभी उसे शाम सा नहीं देखा
पर तुम हमेशा
शाम सी नज़र आती हो

तुम्हारा रूठना शाम का रूठ जाना है
और मैं अक्सर
शाम के रूठने का इंतज़ार करता हूँ

मैं फ़िराक में रहता हूँ
कि उस वक़्त
मैं समुद्र की तलहटी में डूब जाऊं
और वह जो पानी की दीवारों वाला घर है
वहीँ बैठे बैठे
दिन डूबने का इंतज़ार करूँ |

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