आवाज़ नहीं आई
सिक्का ज़मीन से आ टकराया
वह मेरे और सिक्के के जीवन का
पहलू एक था
हम दोनों का ही घर एक था
माटी का- चूल्हा, घड़ा, तवा
दीवार एक थी
सबका एक बीचौना माटी का
और माती का ही था आसमान
मैं अब सिक्का नहीं उछालता
वह बचपन की बातें थीं
फिर फिर आया क्रंदन आज
टन्न की आवाज़ आई
मुझको सिक्के की चुप्पी भाती थी
आवाज़ टन्न की रास न आई
क्या बदला है?
कुछ भी तो नहीं !
हाँ शायद बदली है दीवार
घर का साजो सामान बदला है
चूल्हा, तवा, बिछौना बदला है
थोड़ा बहुत तो बदला है- आसमान
सिक्का वही है
जीवन वही है
बस, सिक्के का पहलू बदला है |
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