मेरे दफ्तर में
एक दिन, आदमी की शक्ल में
घर आया
उसने कहा-
मैं दुनिया के तमाम मकानों की तरफ से
आपसे दरख़ास्त करता हूँ
कि रूपये पर जैसे लिखा होता है
“मैं धारक को .... रूपए अदा करने का वचन देता हूँ”
वैसे ही हमारी वसीयत भी लिख दीजिए
साहब, मैं अब और बेघरों को
मरते नहीं देख सकता
लिखिए साहब, “कि घर तो बस घर है
वह मेरा या तुम्हारा नहीं होता
वह उसका होता है जो उसमें रहता है” |
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