Monday 5 February 2018

नदी

उदासी में
नदी का होना माँ का होना सा है

कई उदास चेहरे हर रोज़
नदी किनारे आकर बैठते हैं
बैठने से उठने तक के समय में
नदी
बहा ले जाती है उदासी
और छोड़ आती है
समंदर पार

नदी ख़ुद की हानी होना नहीं जानती
‘विनिमय’ जानती है
वह सब कुछ ले लेती है
और मुस्कुराहटें लौटाना नहीं भूलती

हम शायद कभी नहीं समझेंगे .....!
नदी का ठहर जाना
उदासी का ठहर जाना है
और नदी का बहना
मुस्कुराहटों का बहना है |

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