कभी कभी मन करता है तेरा हाथ पकडूँ
और ले भागूं
किसी पहाड़ पर
या फिर, किसी तेज़ धार वाली नदी में
पैर लटका के बैठें किसी पत्थर पर
कितना अच्छा हो पानी के बहाव के साथ
हम घुलना शुरू हो जाएँ
थोड़े थोड़े
हम बहते जाएँ और समुद्र की तह में पहुँच जाएँ
वहां जहाँ बस
मछलियों की मुस्कराहट है
स्मृति के रूप में
रह जाएँगी हमारी परछाईयां पत्थर पर
और नदी रास्ता होगी
फिर भी कोई हमें ढूँढ नहीं पाएगा
हम मछली हो जायेंगे
तुझे नहीं पता समुद्र के संसार का राज़
हर मछली और पत्थर की
अपनी एक कहानी है
मछली हो जाने की एक कहानी है |
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