Friday 16 February 2018

मुझे चाँद चाहिए

मुझे चाँद चाहिए 
इसलिए नहीं की उसके पीछे छिपा अंधकार 
उजागर हो सके 
बल्कि इसलिए की- वे किस्से, वे कहानियाँ, वे कविताएँ 
उजागर हो सकें 
जो चाँद के पीछे ढके अँधेरे में छिपी हैं 

उजागर हो सकें 
चाँद पर लिखने वाले कवि, कहानीकारों के भीतर 
बहुत सारे तारे 

और अँधेरे में जीवन की  एक नइ संभावना
तलाशे जाने की आत्मशक्ति 
हो सके जीवित 
हाँ, सिर्फ़ इसीलिए....मुझे चाँद चाहिए !

मैं चाँद को 
किसी स्त्री के जुड़े में नहीं सजाना चाहता 
बल्कि बसते में रखकर 
बहा देना चाहता हूँ नदी में 
ताकि बर्षों से अँधेरे में रह रहीं मछलियों को 
प्रकाश मिल सके 

चाँद को एक नई दुनिया मिल सके 
अँधेरे को अँधेरा मिल सके 
और तारों को अपनी पहचान मिल सके

No comments:

Post a Comment