मेरे कमरे में, एक खूँटी है
जिस पर टंगे हैं- मेरे सपने |
हर रोज़ मैं नींद से जब भी जागता हूँ
खूँटी से
उतार लेता हूँ एक सपना
और दिन भर
बीतता हूँ उसके संग
कभी कभी मेरा सपना
मेरा साथी बनकर मेरे साथ चलने लगता है
और कभी कभी
नाराज़ हो दूर खड़ा हो जाता है
इस लुका छिपी में
मैं थोड़ा थोड़ा ख़ुद को खर्च करता हूँ
और अचानक कभी
मैं ख़ुद, अपना सपना हो जाता हूँ |
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